Monday, December 6, 2010

joy of giving

देने का सुख;घर से मंदिर//मस्जिद है बहुत दूर न जाया जाये चलो किसे रोते हुए बच्चे को हसाया जाये.मित्रो ये शेर मुझे बहुत पसंद है.आप किसी भिखारी को कितनी ही  बड़ी रकम   दान कर दो,उसकी आँखों में वो चमक नहीं दिखाई नहीं देगी जो एक जरूरतमंद की आँखों में दिखाई देगी.हमारे आस पास कोई बच्चा स्पोर्ट्स में नाम कमाना चाहता है उसके पास अच्छे शूज नहीं है या कोई होनहार विद्यार्थी स्कूल या कॉलेज की फ़ीस नहीं दे सकता है,उसे किताबे खरीदने के लिए पैसो की आवश्यकता है तो हमें उनकी मदद जरूर करनी चाहिये. इसी प्रकार हमारे पास कोई शेक्षिक योग्यता है किसी युवा को कैरियर के सम्बन्ध में मार्गदर्शन चाहिये तो उसका भरपूर मार्गदर्शन करना चाहिये.किसी को देने जो सुख है वो लेने में नहीं है.बस मित्रो अपने को तो अपनी बात शोर्ट में कहने की आदत है.प्राचीन हिंदी कवि बिहारी जी का ये  दोहा याद आ रहा है;सतसैया के दोहरे ज्यो नाविक के तीर,देखन में छोटे लगे घव करे गंभीर.सीधे और सरल शब्दों में अपने को अपने बात कहने की आदत है.राजकपूर की फिल्म  का एक गाना याद आ रहा है आपको शायद मेरी बाते अच्छी लग रही है गाना सुना दू -दिल का हाल सुने दिल वाला सीधी सी बात न मिर्च मसाला कह के रहेगा कहने वाला.बस ये अपुन का स्टाइल है शेष फिर आपका मित्र राजेश भारद्वाज

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