Sunday, December 12, 2010
लड़की या बकरी
लड़की या बकरी: आज का ये ब्लॉग उन पेरेंट्स के लिए है जिनकी बेटिया विवाह योग्य हो गई है.हमारे समाज में लड़की के जन्म के साथ ही पेरेंट्स को उसके भविष्य कि चिंता सताने लगाती है.जब बेटी बड़ी हो जाती है तो उस के लिए योग्य वर ढूंढना पेरेंट्स के लिए एक चुनोती पूर्ण कार्य बन जाता है.पेरेंट्स जैसे भी कही भी बिना उसकी मर्जी जाने समाज में उसका रिश्ता पक्का करने कि सोचते है.मै मानता हूँ कि स्तिथियों में काफी बदलाव आया है.परन्तु कमो बेश स्तिथि वैसी ही है जैसा मैंने कहा है.ये स्तिथि भारत सहित सभी एशियाई देशो में है इसके पीछे अथिक कारण भी है तथा लोगो कि पिछड़ी मानसिकता भी है.हमें कन्या दान करना है,कन्या को दान में नहीं देना है.जहा लडकिया आत्मनिर्भर हो गयी है उनकी स्तिथि में काफी सुधार है.पेरेंट्स से मेरा निवेदन है कि वो हर प्रकार से लड़की कि मर्जी जान कर उसके लिए योग्य वर कि तलाश करे.न कि उसे कोई पशु के सामान समझ कर किसी के साथ भी बांध दे केवल अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए.किसी भी तरह के दबाव में निर्णय न ले.बेटियों को आत्मनिर्भर बनाये जिससे वे समाज में सर उठ कर जी सके.मेरी बाते कडवी लगी हो तो क्षमा करे.आपक मित्र राजेश भारद्वाज कृपया ब्लॉग व्यू करे प्रतिक्रिया अवश्य दे !वेदों में क्या लिखा है,शास्त्रों ने क्या कहा है!जो हमने जीवन के सफ़र में जाना वो आपसे कहा है!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment