Tuesday, December 14, 2010

बुरा जो देखन मै चला

बुरा जो देखन  मै चला:मित्रो राजेश भारद्वाज का नमस्कार! दोस्तों  कुछ लोग  हमेशा सोचते रहते है,लोगो का व्यव्हार ऐसा होना चाहिये वैसा होना चाहिये,हमेशा व्यवस्था  को,सरकार को,समाज को कोसते रहते है.मेरे इसे साथियों से कहना है किस किसी और को बदलने कि जरूत नहीं है.शुरुआत स्वयं से करनी चाहिये.कबीर दास जी दोहा है -बुरा जो देखन मै चला,बुरा न मिलिया कोई,जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोई.मै ये नहीं कहता आप बुरे है या आप में कमिया है,परन्तु मेरा ये आपसे निवेदन है कि हम छोटी छोटी शुरुआत कर सकते है जिससे आपको अपने अस पास बदलाव दिखाई देगा.सबसे पहले हमें यह आत्म चिंतन करना चाहिये कि मेरा व्यव्हार अन्य लोगो के साथ कैसा है,यदि आपको कुछ कमिया नज़र आये तो आप अपने व्यव्हार में सकारात्मक बदलाव कर सकते है इस  बदलाव से आपके परिचित आपको और अधिक पसंद करने लगेंगे.इसी प्रकार जहा हम कार्य करते है जहा पब्लिक डीलिंग   होती  है वहा  हम आम जनता का कार्य शीघ्र कर कर उन्हें खुश कर सकते है.याद रखिये हमें किसी सरकारी दफ्तर में कम होता है और वहा का कर्मचारी देरी करता है तो हमें कितना बुरा लगता है,उस पर कितना क्रोध आता है!इसी तरह   हम अधिक से अधिक पेड़ लगाकर पर्यावरण को सुन्दर बना सकते है.भावी पीढ़ी को एक प्रदुषण मुक्त संसार दे सकते है.ये हमारे छोटे छोटे प्रयास हमारी दुनिया को बेहतर बना सकते है.प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार का शेर याद आ रहा है:कैसे नहीं हो सकता आसमा में सुराख़,एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो!हम बदलेंगे तो ये दुनिया अपने आप बादल जाएगी शुरुआत तो अपने आप से करनी होगी.आपका मित्र  राजेश भारद्वाज

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