Saturday, December 11, 2010
भोग दुखो का कारण
भोग दुखो का कारण ; मित्रो आप सभी को राजेश भारद्वाज का नमस्कार.सबसे पहले तो आप सभी को धन्यवाद् जो आप मेरे ब्लॉग को पढ़ रहे है इससे मुझे और अधिक अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है.मित्रो हम जीवन में जितना अधिक खान पान में या दैनिक लाइफ स्टाइल में सुख सुविधाओ का उपयोग करते है,वही सुख/उपभोग भविष्य में हमारे लिए दुखो का कारण बन जाता है,जैसे हम खान पान में अधिकता करते है और शारीरिक परिश्रम नहीं करते है तो हम विभिन्न रोगों को निमंत्रण दे रहे है.इसी प्रकार घर ऑफिस के कार्य में नोकरो पर अधिक निर्भर नहीं रहना चाहिये.एक दृष्टान्त सुनाता हूँ प्राचीन काल में महारानी के यहाँ एक नोकरानी कार्य करते हुए उनके पलंग पर थक कर सो गयी.महारानी ने देखा तो उसने नोकरानी को दस चाबुक लगाने की सजा सुना दी.नोकरानी ने कहा रानी जी में थोड़ी देर आपके पलंग पर गलती से सो गयी तो आपने मुझे दस चाबुक लगाने की सजा सुना दी.परन्तु आप तो रोज इसी पलंग पर सोते हो,भगवन आपको कितने चाबुक लगाने की सजा देगा.रानी ने ये बात सुनकर उसकी सजा माफ़ कर दी.मित्रो कहने का मतलब ये है की जिन कार्यो में हमें सुख नज़र आता है,वही दुःख का कारण बन जाते है.दुकानों पर सेठ लोग दिन भर बैठे रहते है उनकी तुलना में उनके नोकरो का स्वस्थ्य अधिक अच्छा होता है क्योकि वे दिन भर शारीरिक परिश्रम करते है.इसी प्रकार जो लोग सादा भोजन करते है उनका स्वास्थ्य भी उन लोगो की तुलना में अच्छा रहता है जो अधिक तला भुना या वसा युक्त भोजन करते है.इसी प्रकार अधिक मदिरा सेवन,/गुटका,तम्बाकू युक्त उत्पाद भी हमें शीघ्र मोत के द्वारपर ले जाते है.मध्यम मार्ग ही उत्तम मार्ग है. दाल रोटी खाईये,प्रभु के गुण गाइए.आपका मित्र राजेश भारद्वाज
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