Sunday, November 28, 2010
बच्चे मन के सच्चे
बच्चे मन के सच्चे: हम बचपन में गुड्डे गुडियो से खेलते थे.आज मोबाइल और विडियो गेम बच्चो की पहली पसंद बन गए है.यहाँ तक की बच्चे कॉमिक्स पढ़ना भी पसंद नहीं करते है.जबकि बचपन में हमने बल पत्रिकाओ का भरपूर आनंद लिया है.आज के बच्चे बाल पत्रिकाए पढना कम पसंद करते है.कॉमिक्स भी वही पसंद करते जो हिंसा से भरपूर हो या काल्पनिक चरित्रों पर आधारित हो.देवी देवताओ और महापुरशो की जीवनी पर आधारित कॉमिक्स पढना कम पसंद करते है.कहावत है की जैसा अन्न वैसा मन.आधुनिक कॉमिक्स के चरित्र बच्चो के मन पर विपरीत प्रभाव डालते है.ये कहानिया बच्चो के दिमाग की खुराक के सामान है.जो बच्चो को हिंसक और काल्पनिक दुनिया में जीने वाला बना रही है.बाल मन कच्ची मिटटी के सामान होता है.जैसा साहित्य/ किताबे हम बच्चो को देंगे वे ही वास्तविक जीवन में भी वैसा ही बनाने की सोचते है.अतः पेरेंट्स की यह जिम्मेदारी बनती है की अपने बच्चो को अच्छी मेग्ज़िन्स/कॉमिक्स लाकर दे जो बच्चो का सही मायने में मार्गदर्शन कर सके.यहाँ तक की उनके दोस्तों के जन्मदिन आदि अवसरों पर अच्छी पुस्तके उपहार में दे कर नयी परंपरा कायम करे .-आपके कमेंट्स की प्रतीक्षा में आपका मित्र राजेश भारद्वाज 09413247434
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