संसार मुसाफिरखाना है
मित्रो ये संसार एक मुसफिखाना या एक होटल के सामान है.हर व्यक्ति इस संसार रूपी होटल में अधिक से अधिक रुकना चाहता है.परन्तु क्या इस संसार रूपी होटल या सराय में वह अपनी इच्छा से रुक सकता है?
नहीं मित्रो बिलकुल नहीं इस होटल का मालिक बड़ा कठोर है? वह कभी भी किसी को भी अपने होटल से बाहर कर देता है, उस के दिल में दया नहीं है.वह छोटा देखता है न बड़ा,बच्चा देखता है न बूढ़ा.आमिर देखता है न गरीब न दिन देखता है न रात.कभी भी होटल खली करने का हुकम दे देता है
मेरी बहने-भाई बहुत सी सांसारिक वस्तुओ का संग्रह करते है -वह सब धरी रह जाती है,होटल का मालिक कुछ भी साथ ले जाने की आज्ञा नहीं देता है,इतना जानते हुए भी मेरे भाई बहने सांसारिक वस्तुओ के संग्रह में अपने जीवन का अनमोल समय गँवा देते है.कुछ लोग तो धन प्राप्ति के लिए किसी भी सीमा तक दूसरो को पीड़ा देते है,क्या ये उचित है?
मित्रो हमें कभी भी ये संसार रूपी होटल कभी भी खाली करना पड़ सकता है,जीवन बहुत सरलता के साथ ,लालच रहित,कपट रहित जीने का प्रयास करे.दूसरो को सुख ना दे सके तो दुःख भी ना दे.यही जीवन का सार है.
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